हे नीर !  

हे नीर !

“माँ” कहा तुझको हमने,

जीवन दान लिया हमने !

बहाकर अपने, पापों को, तुझमे !

जीवन का उध्धार किया, सबने !

“माँ” है, तू !

पाप हमारे लेती रही,

हमको जीवन देती रही !

अपना मैला तन- मन, तुझमे हम सब धोतेरहे!

तेरे आँचल को हम सब, बंज़र- सूखा करते रहे!

तेरी कृष काया पे, जीवन के नये अंकुर,

कैसे रोपे हम?

तुझको कैसे बचा सके “निधि” सोचे यह?

एक सार्थक प्रयास हमारा,

तेरा आशीर्वाद दे जाएगा,

जीवन के नये रूप,

जल, थल, गगन को दे जाएगा !

जीवन का अमृत, नीर !

जीवन का सरगम सुनाएग !

तेरे आँचल मे माँ !

सरल, सुलभ, सुंदर जीवन राग

फिर गुनगुनाएगा !

14/4/18

7am-9am

#Join our hands together to save

#NallagandalaLakeHyderabad

हो सके तो, लेती आना….

मैं यहाँ बहुत दूर हूँ घर से,
सात समंदर पार हूँ जब से,
ना सौंधी मिट्टी की खुशबू पाती हूँ,
ना नीले आसमान का आँचल पाती हूँ,

पापा का आँगन, दूर है जब से,
माँ आँचल, सिर पर ना जब से,
अपने आँगन मे, रेखा ना कोई पाती हूँ,
माँ के प्यार को बस, अपने मन मे ही, निधि पाती हूँ,

ना माँ के हाथ का खाना है,
ना पापा की, प्यार भरी नसीहत है,
सब कुछ, खाली-खाली और कम सा है,

तुम आते-आते, हो सके तो, लेती आना….
इनमे से, किसी, एक का भी, आधा सा ही, अपना-पन लेती आना…

 

नवयुवती

सड़क के गढ्ढों मे, डोलता हुआ, आटो चला जा रहा था,
एक स्टॉप मे, नवयुवती के चढ़ते ही, सारी नज़रे उस पर टिक गयी,

कुछ मनचलों ने, दो-चार ओछे शब्द उस पर गढ़ दिए,
जो ना बोल पा रहे थे, उनकी  नज़रों ने ही, शब्दों को  गढ़ दिया,

थोड़ी ही दूर पर, एक बाईक, ऑटो के साथ हो ली,
माज़रा  समझते देर ना लगी, 

आटो के सामने, उन मनचलो ने, गाड़ी अड़ा दी,
चालक के,  ऑटो रोकते ही, लड़ाकों ने लड़की को खीचने की कोशिश की,

ऑटो वाले ने हाथ जोड़कर लड़की से कहा,
बेटी मैं तो बूढ़ा हो गया हूँ, रोज़ रोज़ के तुम्हारे इस अपमान से, मरणासन्न हो रहा हूँ,

जवान लड़के ही क्या, औरते भी तुझे साथ नही देती है,
अच्छा होता जो, तू बीमार माँ की, दावा और भाई की पढ़ाई के लिए,  इनके बाप से, उधार ना लेती,

हर किसी को, तुझमे ही बुराई नज़र आती है,
क्योंकि तू, जवान सुंदर लड़की, इनकी बेटी या बहन नही, पराई है,

तुझे सब ताने मार जाते है, नज़रों से तेरा चरित्र गिरा जाते है,
इन मनचलों के, इरादों को, बुलंदी दे जाते है,

एक आवाज़ भी तेरी, तरफ नही उठती है, 
तू ,रोज़ रोज़ ये अपमान,  कैसे सहती है?

लड़की ने उतरते हुए भी कुछ ना कहा,
एक क्रोध भरी नज़रों से, सबको देखा,

जो नज़रें उसे ताने मार रही थीं,
मानों धरती मे दबी जा रही थीं,

बिन कहे ही, उसकी नज़रों ने, हम सबको पानी कर दिया,
उसकी तीखी मुस्कान ने, हम सबको बेज़ुबान कर दिया…

एक बचपन उसने जिया (बाल दिवस विशेष)

एक कमरा सपनो  भरा,
फर्श मखमली, छत सितारों भरीं,
दीवारें रंगों सजीं, खिड़कियाँ फूलों रंगीं,

सपने कहीं उँचे की, आकाश भी कम लगे,
ज़मीन कहीं मखमली की, बाल भी शूल लगे,
एक बचपन उसने जिया, जिसे सब कुछ कम लगा,

एक कमरा, कुछ टूटी-मूटी, सीकचों से बना,
फर्श चुभता, बहती-रिसती छत,
दीवारें उधड़ी, रंग बही, खिड़कियाँ शूलों सजीं,

सपने बस इतने की, आकाश तले छाँव मिले,
ज़मीन बस इतनी रहे, की पैरों तले से  न हटे,
निधि “एक बचपन उसने  भी जिया, जिसे कभी कुछ भी ना मिला….

 

-एक दिए की रौशनी तले- (दीपावली त्यौहार)

दीपावली की रात… एक घर मे…

छोटी-छोटी बेटियाँ, माँ का हाथ बटा रही है,
घर मे रंग-रोगन कर, पकवान बना रही है,

बेटा रात मे जुआ खेलते पकड़ा गया है,
पिता से, जेल के, चक्कर कटवा रहा है,

बहू को, पहली ही दीपावली मे,
दहेज के नाम, पटाखों के हवाले कर दिया है,

दीपावली रौशनी का त्यौहार है,
हम सबने साबित कर दिया….

किसी घर से, मीठे के डब्बे, बासे होने पर, फेंके गये,
कोई, कई रातों बाद, आज भी, भूखा सोया है,

किसी घर बच्चो ने ३,४ जोड़ी कपड़े बदले थे,
किसी के तन मे आज भी, चिथड़े नही थे,

किसी अमीर ने आज, कुत्ते का घर भी सजाया,
किसी ग़रीब की, बरसों से टूटी झोपड़ी मे, आज भी अंधेरा छाया है ,

दीपावली रौशनी का त्यौहार है,
हम सबने साबित कर दिया….

कोई बहुत खुश है की, बेटी टी.वी. मे आ रही है,
तो क्या, अंगप्रदर्शन, गाली- गलौच कर पैसे कमा रही है,

कोई बहुत खुश है की, बेटा विदेश मे नौकरी कर, नाम कमा रहा है,
तो क्या, बरसों से, दीपावली मे रुपये भेज कर, कर्तव्य निभा रहा है,

नाती-पोते दीपावली मे, महँगे उपहार माँगते है,
एक दिन दीपावली मना, बूढ़ो से निजात पाते है,

दीपावली रौशनी का त्यौहार है,
हम सबने साबित कर दिया….

हे लक्ष्मी मैय्या! तू हर बार “निधि” को जीवन के, नये रूप दिखाती है,
एक दिए की रौशनी तले, कितना अंधेरा है, तू समझा जाती है…