पुणे महाराष्ट्र मे सेट के नतीज़े घोषित हो चुके है, जो हमे सोचने पेर मज़बूर करते है, २१०० विद्यार्थियों मे से केवल४५ पास! ये नतीज़े हमे अचंभे मे डालने वाले है! क्योकि इस परीक्षा मे बैठने वाले विद्यार्थी पी.जी. किए हुए और उच्च शिक्षित लोग है! फिर नतीज़े ऐसे क्यो? सोचने वाली बात है की इनके लिए ज़िम्मेदार कौन?ये हाल आज का नही है पिछले वर्षो से इसी प्रकार के नतीज़े प्राप्त हो रहे है! मेरे विचार से इनके लिए जीतने ज़िम्मेदार शिक्षक है, उतना ही ज़िम्मेदार शिक्षा प्राद्दाली भी है! आज शिक्षा के व्यवसाय मे, व्यक्ति अपनी इच्छा से नही बल्कि मज़बूरी से आता है!शिक्षा प्रदान करना उसकी सोच नही है! जो बाकी नौकरियों मे नही जा पाते,वो शिक्षक बनाने आ जाते है! तो परीक्षा भी बेमन से देते है!
इसके पीछे काई कारण है! आज केवल शिक्षक ही ऐसा पद है, जिसमे केवल नाम की महत्ता रह गयी है काम की नही! शिक्षक के नाम पर संविदा शिक्षक, तो कही गुरुजी के नाम पर शिक्षको की भरती की जाती है वो भी मामूली तनख़्वाह पर और ये तनख़्वाह उसे महीनो तक नही मिलती! अपनी दुर्दशा पर रोते शिक्षक कहाँ से दूसरों को शिक्षा देंगे! उन्हे धरने पर बैठना पड़ता है, तो कही लाठी और ख़ूसें खाने पड़ते है! कोई भी मदद नही मिलती!अब तो शिक्षक पद का सम्मान भी कम हो चुका है!किसी समय मे पूजे जाने वाले शिक्षक आज एक नमस्ते को तरसते है!
जहाँ प्रोफेशनल डिग्री पाने के लिए थोक के भाव कालेज खुल गये है,जिनमे कितने भी कम अंक प्राप्त करने वाला विद्यार्थी बड़े रुपयो की नौकरी पाने के साथ ही साथ विदेश यात्रा भी कर लेता है!वहाँ मेहनत से पारम्परिक विषयो को पड़ने वालों को कोई नौकरी नही!अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति किस मानसिकता से परीक्षा देगा?परीक्षा देना भी ऐसे लोगों को भारी पड़ता है!
इस गिरावट का कारण केवल यह नही है!आज आदमी के दिल मे रुपये कमाने के नये–नये और सस्ते रास्ते आते है!आज शिक्षक बनाना पार्ट टाइम काम माना जाने लगा है! लोग इसे साइड मे रखकर दूसरे काम करना चाहते है! इसलिए वो उस मेहनत के साथ परीक्षा की तैयारी भी नही करते है! नतीज़ा हमारे सामने है!पर ये सोचने वाली बात है की, अगर यही हाल रहा तो, हम शिक्षक कहाँ से लाएँगे?हमे शिक्षकों की स्थिति सुधारने के प्रयास पहले करने चाहिए!तब समाज़ मे और लोगों के बीच इस पद की महत्ता और सेवा भावना जाग्रत होगी और स्वेक्षा से लोग शिक्षक बनाने को तैयार होंगे|