फिर खोज रही हूँ,
वो टूटे-छूटे, बिखरे-सिमटे पल,
जिनको हमने जाने मे,
कभी अनजाने मे,
छुपा दिया था,
कभी आँसू मे,
कभी मुस्कान मे,
वो हर एक पल,
कुछ कह रहा है,
कभी ज़ोर से,
कभी चुपके से,
कुछ आवाज़े जो हल्की है,
उनको फिर से, ज़ोर से सुनना है,
जो, ज़ोरों से कनों से टकराती है,
उनको हल्का करना है,
तुम साथ हो निधि के ,
इसलिए..
बिखरे पलों को समेटना है…
मेरी उलझनों को,
तुम्हारे हाथो से, सुलझना है…
क्योंकि…
उन टूटे-छूटे, बिखरे-सिमटे पलों को,
प्यार मे बदलना है…
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